October 29, 2025
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Science साइबेरिया का ‘नर्क का द्वार’ 30 साल में 3 गुना बढ़ा, वैज्ञानिक क्यों हुए चिंतिंत?

साइबेरिया का बाटागिक क्रेटर दुनिया के सबसे पुराने क्रेटरों में से एक है. पर 30 सालों में इसका गड्ढा तेजी से बड़ा हो रहा है. इसको लेकर वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं. जानकारों का कहना है कि गड्ढे गर्मी के दिनों में ज्यादा तेजी से बड़े हो रहे हैं.

देहाती लेखक। साइबेरिया में याना नदी घाटी के पास जमीन में एक बड़ा सा गड्ढा है. ये जंगलों से घिरा हुआ है. इसे बाटागाइका क्रेटर के नाम से भी जाना जाता है. कुछ स्थानीय लोग इसे ‘गेटवे टू हेल’ यानी नर्क का द्वार भी कहते हैं. दरअसल कुछ दशक पहले यह इलाका बर्फ से ढंका हुआ था. बर्फ पिघलने के बाद जब इसकी तस्वीर सामने आई तो सभी हैरान थे. पृथ्वी की सतह से इसकी गहराई इतनी ज्यादा थी यहां लोग जाने से डरने लगे. बस इसी वजह से इसका नाम गेटवे टू हेल पड़ा. पर फिलहाल इसकी चर्चा दूसरी वजह से हो रही है. दरअसल इस गड्ढे के बढ़ते आकार ने वैज्ञानिकों को सकते में डाल दिया है. अब यह गड्ढा 200 एकड़ में फैला हुआ है और 300 फीट गहरा हो चुका है. ऐसा यहां बर्फ के पिघलने के बाद पानी के बह जाने के बाद होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सिर्फ 30 सालों में ये गड्ढा तीन गुना बढ़ गया है. गड्ढा इतना बड़ा हो चुका है कि अब अंतरिक्ष से भी नजर आने लगा है. इसमें बढ़ोतरी की वजह से आसपास के इलाके की जमीन भी कम होती जा रही है. साथ ही भूस्खलन का खतरा भी बढ़ रहा है.साइंटिस्ट इसके पीछे क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन को बता रहे हैं.

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बाटागाइका क्रेटर क्या है
बाटागाइका क्रेटर इस इलाके में सबसे बड़े क्रेटरों में से एक है. इसका आकार किसी स्टिंग रे, हॉर्सशू क्रैब या बड़े टैडपोल यानी मेंढक के बच्चे जैसा दिखता है. यह हमेशा ही जमे रहने वाला इलाका है जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं. बाटागाइका क्रेटर असल में गड्ढा नहीं है बल्कि यह पर्माफ्रॉस्ट का एक हिस्सा है, जो तेजी से पिघल रहा है.

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सवाल है कि पर्माफ्रॉस्ट आखिर बनता कैसा है. तो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मानें तो पर्माफ्रॉस्ट वह जमीन है जो लगातार कम से कम दो साल तक जीरो डिग्री सेल्सियस तापमान पर पूरी तरह से जमी रहती है. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पास के क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट सबसे आम हैं. यह धरती के बड़े हिस्से को कवर करते हैं. खासतौर पर उत्तरी गोलार्ध में करीब एक चौथाई जमीन के नीचे पर्माफ्रॉस्ट है.

पर्माफ्रॉस्ट में 80 प्रतिशत बर्फ होती है. उसके बाद मिट्टी या रेत या पेड़-पौधों के अंश होते हैं. बाटागाइका क्रेटर करीब 650,000 साल पुराना है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इस गड्डे के सामने आने की प्रक्रिया की शुरुआत 1960 के दशक में हुई.

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उससे पहले रूसियों ने साइबेरियाई जंगल की एक पट्टी को साफ कर दिया था. इससे मिट्टी गर्मियों में सूरज के संपर्क में आ गई, जिससे एक गड्ढा पिघलना शुरू हो गया जो अब जाकर आधा मील चौड़ा और 300 फीट गहरा है – और अभी भी बढ़ता ही जा रहा है. आसपास की मिट्टी धंसती ही जा रही है.

वैज्ञानिक हैरान इस बात पर है कि यह गड्ढा लगातार बढ़ क्यों रहा है. और जिस तरह से गड्ढे का आकार बढ़ रहा है वो इस बात का संकेत है कि जमी हुई बर्फ पर जलवायु परिवर्तन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.

वैज्ञानिक क्यों हैं चिंतित?
जानकारों का कहना है कि गड्ढे गर्मी के दिनों में ज्यादा तेजी से बड़े होते हैं. इसके लिए सबसे जिम्मेदार तो इलाके में हुई पेड़ों की कटाई को ही माना जाना चाहिए. लिहाज़ा गर्मी के दिनों में सूरज की रौशनी ने इस इलाके को गर्म कर दिया.

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि लगातार पिघलने से संभावित रूप से आसपास की जमीन निगल सकती है और आसपास के गांवों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया है कि गड्ढा पहले से ही याना नदी को प्रभावित कर रही है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि जमी हुई जमीन के पिघलने से हमें यहां भविष्य में सिर्फ गड्ढे ही नहीं बल्कि झरने और झीलें भी दिखाई देंगी. हालांकि वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि बाटागिका क्रेटर के गड्ढे का अध्ययन अहम जानकारी दे सकता है.

गड्ढे की स्टडी पर जोर दे रहे साइंटिस्ट
वैज्ञानिकौं का मानना है कि यह गड्ढा ऐसा है कि यहां स्टडी करने से हमारी पृथ्वी का भविष्य पता चल सकता है. क्योंकि पर्माफ्रॉस्ट में मरे पौधे, जानवर होते जो सदियों से इसमें जमे हुए होते हैं. सर्दियों में जब मिट्टी जमी हुई और स्थिर होती है तो वैज्ञानिक विलुप्त जानवरों के नमूने ले उन पर रिसर्च कर सकते हैं कि कैसी वनीकरण और बदलती जलवायु ने इस क्षेत्र को प्रभावित किया है.

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पर्माफ्रॉस्ट में कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन जैसी गैस जमा रहती है. वायुमंडल में निकलती भी रहती है. यहां पर गर्मी सोखने वाली गैस रहती हैं. जिसकी वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग भी बढ़ती है. इसकी वजह से ही पर्माफ्रॉस्ट तेजी से पिघलता है. और ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के पर्माफ्रॉस्ट में हमारे वर्तमान वैश्विक वायुमंडल में मौजूद कार्बन की तुलना में दोगुना कार्बन मौजूद है. इससे जलवायु संकट और भी बढ़ सकता है इसके बारे में फिलहाल बहुत कुछ जानकारी नहीं है.

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Mayank Kashyap
Mayank Kashyap
न्यूज़ एडिटर | देहाती लेखक

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